


ग्राम विकास अधिकारी पर फर्जी रिपोर्ट लगाकर उच्चाधिकारियों को गुमराह करने का आरोप
कर्नलगंज, गोंडा, 28 जून 2025:
थाना कटरा बाजार अंतर्गत ग्राम पंचायत पहाड़ापुर में सार्वजनिक रास्ते पर अवैध निर्माण का मामला प्रशासनिक उदासीनता और जिम्मेदारों की चुप्पी के चलते लगातार चर्चा में बना हुआ है। स्थानीय निवासी जगदम्बा प्रसाद पांडेय पुत्र माधवराज पांडेय ने इस संबंध में कई बार अधिकारियों को शिकायती पत्र देकर विरोधी शारदा प्रसाद पुत्र श्यामलाल द्वारा सड़क पर किए गए अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि शारदा प्रसाद ने सार्वजनिक रास्ते पर सरकारी निधि से बनी लगभग 20 मीटर इंटरलॉकिंग को उखाड़कर अपने मकान का निर्माण कर लिया है और उसमें चढ़ने के लिए दो सीढ़ियां भी बनवा ली हैं। इससे गांव के अन्य लोगों को रास्ते से गुजरने में भारी दिक्कत हो रही है।
24 जून 2025 को ग्राम विकास अधिकारी व सचिव ग्राम पंचायत विवेकानंद ने सहायक विकास अधिकारी के माध्यम से जिला पंचायत राज अधिकारी को एक जांच रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें उन्होंने मौके पर सार्वजनिक रास्ते पर निर्माण की पुष्टि की थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि सरकारी निधि से बनी इंटरलॉकिंग उखाड़ी जा चुकी है और शारदा प्रसाद ने अपने मकान की सीमा बढ़ाकर सड़क पर निर्माण कर लिया है।
हालांकि, शिकायतकर्ता का आरोप है कि रिपोर्ट भेजने के बाद ग्राम विकास अधिकारी ने बाद में अपनी जांच रिपोर्ट में फेरबदल कर उसे तोड़-मरोड़ कर ऑनलाइन अपलोड कर दिया, जिससे उच्चाधिकारियों को गुमराह किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि आज तक अवैध निर्माण करने वाले के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई और उसका कब्जा अब भी उसी तरह बना हुआ है।
प्रशासन की चुप्पी और जिम्मेदार अधिकारियों की निष्क्रियता से ग्रामीणों में आक्रोश है। जब इस विषय में खंड विकास अधिकारी हलधरमऊ से जानकारी लेने के लिए उनके सीयूजी नंबर पर संपर्क किया गया तो फोन नेटवर्क क्षेत्र से बाहर मिला।
इस मामले में पीड़ित पक्ष ने दोबारा उच्चाधिकारियों से मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए और सार्वजनिक रास्ते को अतिक्रमण मुक्त कराया जाए। साथ ही जांच अधिकारी के विरुद्ध भी कार्रवाई की मांग की जा रही है, जिन पर फर्जी रिपोर्ट तैयार कर वास्तविकता को छिपाने का गंभीर आरोप लगा है।
इस पूरे प्रकरण ने न केवल स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं और संपत्तियों की सुरक्षा कितनी असुरक्षित है।
