अवधी-कोसली को संवैधानिक दर्जे की मांग को लेकर संयुक्त संघर्ष का आह्वान।

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अवधी-कोसली को संवैधानिक दर्जे की मांग को लेकर संयुक्त संघर्ष का आह्वान।

नेशनल सेमिनार से लौटे गौरव अवस्थी ने साझा की सेमिनार की अहम बातें।

 

रायबरेली।

ओडिशा के बरगढ़ स्थित कृष्णा विकास संस्थान सभागार में आयोजित दो दिवसीय हलधर नाग नेशनल सेमिनार में भाग लेकर लौटे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति न्यास के संयोजक गौरव अवस्थी ने अवधी और कोसली भाषाओं को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का आह्वान किया है।

उन्होंने कहा कि अवधी और कोसली भाषाएं एक ही परिवार की हैं – अवधी भगवान श्रीराम की मातृभाषा है तो कोसली उनकी ननिहाल की। कोसली भाषा को उड़ीसा के पश्चिमांचल में संबलपुरी भाषा के साथ पहचाना जाता है, जहां माता कौशल्या का जन्म स्थान माना जाता है। अवस्थी ने बताया कि अवधी भाषा उत्तर प्रदेश के 18 जनपदों में प्रमुखता से और 7 जनपदों में आंशिक रूप से बोली जाती है, वहीं कोसली उड़ीसा के 10 जिलों में प्रमुख रूप से बोली जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि अवधी बोलने वालों की संख्या 10 करोड़ से अधिक और कोसली बोलने वालों की संख्या करीब डेढ़ करोड़ है।

गौरव अवस्थी ने अपने शोध पत्र में बताया कि दोनों ही भाषाएं लंबे समय से संवैधानिक मान्यता के लिए संघर्ष कर रही हैं, ऐसे में अब आवश्यकता है कि दोनों भाषा-भाषी समाज संयुक्त संघर्ष की राह पर आगे बढ़ें।

सेमिनार में उनके इस विचार का आयोजन समिति अभिमन्यु साहित्य सांसद के प्रमुख अशोक पुजाहरी, सुशांत कुमार मिश्रा, दिनेश कुमार माली सहित कोसली-संबलपुरी के कई साहित्यकारों ने समर्थन किया। सेमिनार के उपरांत संयुक्त संघर्ष की एक कार्ययोजना पर भी चर्चा की गई।

अनुवाद पर दिया गया विशेष जोर

सेमिनार के पांचवें सत्र में अनुवाद विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए गौरव अवस्थी ने आचार्य द्विवेदी के योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि आचार्य द्विवेदी ने 125 वर्ष पूर्व संस्कृत, अंग्रेज़ी और अन्य भारतीय भाषाओं के ग्रंथों का अनुवाद कर हिंदी भाषी समाज को आगे बढ़ाने का कार्य किया था। इसी कारण उनके कार्यकाल को ‘द्विवेदी युग’ कहा जाता है। उन्होंने कोसली साहित्यकारों से भी अन्य भाषाओं के साहित्य का अनुवाद करने की अपील की।

शिक्षा मंत्री ने किया उद्घाटन, भाषाओं की महत्ता पर बोले

सेमिनार का उद्घाटन केंद्रीय शिक्षा मंत्री एवं संबलपुर के सांसद धर्मेंद्र प्रधान ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत की सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं हैं और सभी का राष्ट्रनिर्माण में समान योगदान है। उन्होंने नई शिक्षा नीति को भाषाओं के सम्मान को बढ़ावा देने वाली नीति बताया।

इस मौके पर उन्होंने डॉ. दिनेश कुमार माली एवं डॉ. सी. जयशंकर बाबू द्वारा हिंदी में संपादित एवं अनुवादित ‘हलधर ग्रंथावली’ का विमोचन भी किया। उद्घाटन सत्र को ओडिशा के उच्च शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री सूरज सूर्यवंशी, सांसद प्रदीप कुमार पुरोहित और कृष्ण विकास संस्थान के अध्यक्ष डी. मुरली कृष्णा ने भी संबोधित किया।

 

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