सीएचसी कर्नलगंज में 30/30 प्रतिशत का खेल: सरकारी अस्पतालों में माफियागिरी, मरीज लुट रहे, सिस्टम मौन

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

स्वास्थ्य विभाग की छवि पर सवाल, डॉक्टर-दलाल गठजोड़ बना मरीजों की पीड़ा का कारण।

कर्नलगंज (गोंडा): जनपद गोंडा के कर्नलगंज क्षेत्र स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) एक बार फिर सवालों के घेरे में है। सूत्रों के मुताबिक यहां का पूरा चिकित्सा तंत्र कथित तौर पर “30/30 प्रतिशत” के भ्रष्ट गठजोड़ की गिरफ्त में है, जहां डॉक्टरों और दलालों के बीच मिलीभगत से मरीजों का आर्थिक और मानसिक शोषण हो रहा है। यह व्यवस्था न केवल गरीब मरीजों की उम्मीदों पर पानी फेर रही है, बल्कि पूरे सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की छवि पर भी गहरा प्रश्नचिह्न लगा रही है।

कैसे चलता है 30/30 प्रतिशत का खेल?

स्थानीय सूत्रों और पीड़ितों की मानें तो सीएचसी कर्नलगंज में मरीजों को बाहरी मेडिकल स्टोर्स की महंगी दवाएं लिखी जाती हैं। इन दवाओं पर 30 प्रतिशत हिस्सा दलालों और 30 प्रतिशत हिस्सा डॉक्टरों को जाता है। यह कथित ‘कमीशन सिस्टम’ इतने योजनाबद्ध तरीके से चल रहा है कि सरकारी अस्पताल, जो गरीबों की उम्मीद का केंद्र होना चाहिए, अब दलाली का अड्डा बन गया है।

डॉक्टरों की पर्चियों में छुपा खेल

हाल ही में एक महिला संविदा स्टॉफ नर्स की पर्ची वायरल हुई थी, जिसमें डिलीवरी के समय बाहर की महंगी दवाएं लिखी गई थीं। यह मामला सुर्खियों में आने के बाद कई और खुलासे हुए। बताया गया कि कुछ आशा बहुएं भी इस भ्रष्ट नेटवर्क का हिस्सा बन चुकी हैं, जो गर्भवती महिलाओं को जानबूझकर उन डॉक्टरों के पास ले जाती हैं जिनसे उन्हें कमीशन मिलता है। अगर ऐसा संभव न हो, तो उन्हें सीधे प्राइवेट अस्पतालों में ले जाया जाता है, जहां सामान्य प्रसव पर 2,000 रुपये और सिजेरियन केस में 5,000 से 7,000 रुपये तक की वसूली की जाती है।

स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी अनदेखी

मरीजों को सरकार द्वारा घोषित प्रसव के दौरान दी जाने वाली सुविधाएं जैसे—फ्री खाना, नाश्ता, दूध, फल आदि—कागजों तक सीमित रह गई हैं। पत्रकारों द्वारा की गई पड़ताल में यह स्पष्ट हुआ कि डिलीवरी के 2-3 घंटे के भीतर ही प्रसूताओं को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। इसका मकसद यह होता है कि कोई भी मरीज अस्पताल में रुककर व्यवस्था की पोल न खोल सके। यदि मरीज ज्यादा देर रुका, तो उसे खाने-पीने की सुविधा न मिलने पर वह आवाज उठाएगा, जिससे डॉक्टरों और अस्पताल प्रशासन की बदनामी होगी। इसलिए ‘खुलासे के डर’ से उन्हें जल्द छुट्टी दे दी जाती है।

जिम्मेदार भी मजबूर!

जब इस पूरे मामले पर कुछ जिम्मेदारों से बातचीत की गई तो उन्होंने स्वीकार किया कि यदि रजिस्टर में कम मरीज दर्ज होते हैं तो उन्हें ऊपर से फटकार मिलती है। इसलिए मजबूरी में मरीजों की संख्या बढ़ाने और सबको संतुष्ट रखने के लिए यह ‘समायोजन प्रणाली’ अपनाई जाती है। यह जवाब सुनकर यह स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार अब केवल व्यक्तिगत लाभ का नहीं, बल्कि एक पूरे तंत्र की मजबूरी बन चुका है।

पुरानी खबरें भी दे रही पुष्टि

यह पहला मौका नहीं है जब सीएचसी कर्नलगंज सवालों के घेरे में आया है। इससे पहले भी कई बार प्रसव के दौरान स्टाफ की लापरवाही, दवाओं की कालाबाजारी, सफाई व्यवस्था की बदहाली, वेंडरों के साथ सांठगांठ, और महिला कर्मचारियों द्वारा रिश्वतखोरी की खबरें सामने आ चुकी हैं। कई बार स्थानीय मीडिया ने इन मुद्दों को उठाया, लेकिन हर बार कुछ दिन की जांच के बाद मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

क्या कहता है स्वास्थ्य विभाग?

इस पूरे प्रकरण पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी की तरफ से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। अगर ऐसे में समय रहते जांच नहीं की गई और दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर जनता का विश्वास पूरी तरह खत्म हो सकता है।

जनता पूछ रही है:

➡️क्या सरकारी अस्पताल अब गरीबों के लिए नहीं बचे?

➡️क्या स्वास्थ्य सेवाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं?

➡️क्या डॉक्टरों का काम इलाज करना है या कमीशन वसूलना?

सरकार को चाहिए कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करे। वरना “जन कल्याण” का नारा केवल भाषणों में ही रह जाएगा।

 

Leave a Comment

और पढ़ें

best news portal development company in india