
गोण्डा/कर्नलगंज।श्रावण माह की पावन परंपरा और आस्था के प्रतीक हरियालिका तीज (कजरीतीज) मेले का आगाज़ सोमवार की रात्रि से कर्नलगंज के पावन सरयू तट से हो गया है। यह मेला जनपद का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक मेला माना जाता है, जिसमें न केवल गोंडा जनपद, बल्कि पड़ोसी जिलों बहराइच, बाराबंकी, लखनऊ और श्रावस्ती से भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु और कांवरिया पहुंचते हैं।
मेले के शुभारंभ के साथ ही सरयू तट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। चारों ओर “बोल बम” और “हर-हर महादेव” के जयकारों से वातावरण गूंज उठा। कांवरिया सरयू से पवित्र जल भरकर कांवड़ यात्रा पर निकल पड़े। महिलाएं और पुरूष श्रद्धालु एक साथ पारंपरिक भक्ति गीतों के साथ झूमते-गाते दिखाई दिए।
प्रशासन की मुस्तैदी
भीड़ को देखते हुए कर्नलगंज पुलिस और प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा इंतजाम किए हैं। नदी तट से लेकर मुख्य मार्गों तक पुलिस बल तैनात है। सुरक्षा के मद्देनज़र गोताखोरों की टीम अपनी नावों और स्टीमर के जरिए लगातार नदी में भ्रमण कर कांवरियों की देखरेख कर रही है। डूबने की आशंका से बचाव के लिए प्रशासन ने हर किनारे पर सतर्क निगरानी रखी है।
ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर भी प्रशासन ने कड़े कदम उठाए हैं। कर्नलगंज-लखनऊ मोड़ से लखनऊ जाने वाले वाहनों को डायवर्ट किया जा रहा है, वहीं बहराइच की तरफ जाने वाले वाहनों को भी कर्नलगंज-बहराइच मोड़ से मोड़ दिया गया है। भीड़ प्रबंधन के तहत नरायणपुर मोड़ से मोटरसाइकिलों का प्रवेश रोक दिया गया है, जिससे श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
सामाजिक सहयोग और भंडारे की धूम।
धार्मिक उत्सव में समाजसेवी भी पीछे नहीं हैं। जगह-जगह सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा भंडारे का आयोजन किया गया है। श्रद्धालु कांवरिया प्रसाद और भोजन का आनंद लेते हुए, DJ की धुनों पर भक्ति गीतों और कजरी गीतों पर ठुमकते नजर आ रहे हैं। पूरे क्षेत्र में उत्सव का माहौल देखते ही बनता है।
खोया-पाया केंद्र की व्यवस्था।
श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए सरयू तट पर खोया-पाया केंद्र स्थापित किया गया है। पहले की तरह इस वर्ष भी इसकी जिम्मेदारी सिपाही गिरजाशंकर को सौंपी गई है, जो अपनी निष्ठा और तत्परता के लिए जाने जाते हैं। यहां श्रद्धालु किसी भी खोई वस्तु या बिछुड़े परिजनों की जानकारी दर्ज करा सकते हैं।
मेले का प्रबंधन और निगरानी।
मेला प्रबंधक अपनी टीम और स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ लगातार मेले का भ्रमण कर व्यवस्थाओं का जायजा ले रहे हैं। प्रकाश व्यवस्था, पेयजल और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है।
आस्था और संस्कृति का संगम
कजरीतीज का यह मेला केवल आस्था का ही नहीं बल्कि लोक संस्कृति और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। महिलाएं जहां पारंपरिक गीत गाती हैं, वहीं बच्चे मेले की रौनक बढ़ाते हैं। यह पर्व सावन की हरियाली और श्रद्धा की गंगा-जमुनी संस्कृति का जीवंत उदाहरण है।कुल मिलाकर, सरयू तट पर शुरू हुआ कजरीतीज मेला आस्था, भक्ति और उल्लास का अद्भुत संगम बन चुका है। श्रद्धालुओं का उत्साह और प्रशासन की सतर्कता मिलकर इस आयोजन को सफल और ऐतिहासिक बना रहे हैं।

Author: Hind Lekhni News
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