


गोंडा। जिले में बिना मान्यता के संचालित हो रहे अवैध स्कूलों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई के आदेश कागजी औपचारिकता तक सिमटकर रह गए हैं। जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने 26 अप्रैल को जिले की चारों तहसीलों के तहसीलदारों, थानाध्यक्षों और खंड शिक्षा अधिकारियों (बीईओ) को संयुक्त रूप से कार्रवाई कर 15 दिनों के भीतर अवैध स्कूलों को बंद कराने और रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। हालांकि, दो महीने बीत जाने के बावजूद न तो इन स्कूलों को बंद किया गया और न ही संचालकों के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाया गया। इस निष्क्रियता से अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है, जिससे जुलाई में स्कूलों के फिर से खुलने की संभावना बढ़ गई है।
जिले के विभिन्न विकास खंडों में कुल 163 अवैध स्कूल चिह्नित किए गए हैं। इनमें बभनजोत में 25, नवाबगंज में 22, हलधरमऊ में 11, इटियाथोक में 10, परसपुर और मुजेहना में 9-9, कटरा बाजार, रुपईडीह, मनकापुर और तरबगंज में 8-8, कर्नलगंज, झंझरी, पंडरी कृपाल, छपिया, वजीरगंज और बेलसर में 7-7, तथा नगर क्षेत्र में 3 स्कूल शामिल हैं। इन स्कूलों के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई, जिससे कार्रवाई की गंभीरता पर सवाल उठ रहे हैं। केवल कर्नलगंज क्षेत्र की बीईओ ने कुछ स्कूल बंद कराने का दावा किया है, लेकिन इसकी वास्तविकता धरातल पर जांच का विषय है। अन्य क्षेत्रों से कोई ठोस जानकारी नहीं मिली, जिससे प्रशासन की कार्यशैली पर संदेह और गहरा हो गया है।
प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनय तिवारी ने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, “जब सरकार स्कूलों के युग्मन की कार्रवाई कर रही है, जो शिक्षा का अधिकार (आरटीई) नियमों का उल्लंघन है, तब अवैध स्कूलों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? यह बेसिक शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने की साजिश प्रतीत होती है।” तिवारी ने चेतावनी दी कि शिक्षक संगठन इसका पुरजोर विरोध करेगा और आवश्यकता पड़ी तो आंदोलन भी किया जाएगा। उनकी यह टिप्पणी जिले में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है। इस संबंध में बेसिक शिक्षा अधिकारी अतुल कुमार तिवारी ने बताया कि विभाग ने 163 अवैध स्कूलों को चिह्नित किया है और एक जुलाई से स्कूल खुलने के बाद अभियान चलाकर सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, पिछले दो महीनों में कोई प्रभावी कदम न उठाए जाने के कारण उनके इस दावे पर भरोसा करना मुश्किल लग रहा है। अभिभावकों और स्थानीय लोगों का कहना है कि अवैध स्कूलों के संचालन से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि छात्रों का भविष्य भी खतरे में पड़ रहा है। बताते चलें कि जिले में बेसिक शिक्षा व्यवस्था पहले से ही कई चुनौतियों से जूझ रही है। अवैध स्कूलों का संचालन न केवल शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह बच्चों के सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अधिकार को भी प्रभावित कर रहा है। प्रशासन की निष्क्रियता और अधिकारियों की चुप्पी से यह सवाल उठता है कि क्या ये स्कूल प्रभावशाली लोगों के संरक्षण में चल रहे हैं? जुलाई में स्कूलों के फिर से खुलने की आशंका के बीच अभिभावकों और छात्रों के बीच असंतोष बढ़ रहा है। यदि प्रशासन ने जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह मुद्दा और गंभीर रूप ले सकता है।
