


कर्नलगंज, गोंडा। उत्तर प्रदेश के गोंडा जनपद से एक हृदयविदारक और प्रशासनिक लापरवाही का शर्मनाक मामला सामने आया है, जिसने कानून-व्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था और पुलिस तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है। मामला कर्नलगंज कोतवाली क्षेत्र के ग्राम लालेमऊ का है, जहां दबंगों ने एक महिला के घर का छप्पर जबरन गिराने की कोशिश की, और विरोध करने पर महिला और उसके पुत्र पर धारदार हथियार से जानलेवा हमला कर दिया।
हमले में दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए। शरीर के कई हिस्सों में गहरे जख्म आए और वे खून से लथपथ हालत में बेहोश होकर ज़मीन पर पड़े रहे। मौके पर पहुंची डायल 112 की PRB ने किसी तरह दोनों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कर्नलगंज पहुंचाया, जहां से उन्हें प्राथमिक उपचार के बाद गोंडा जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया।
अस्पताल में इलाज से इनकार, FIR की मांग पर अड़ा प्रशासन
सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि गोंडा जिला अस्पताल में FIR दर्ज न होने के कारण डॉक्टरों ने इलाज से इनकार कर दिया। मां-बेटे की हालत गंभीर थी, फिर भी उन्हें घंटों स्ट्रेचर पर तड़पते रहने के लिए छोड़ दिया गया। डॉक्टरों और स्टाफ ने न तो भर्ती किया और न ही कोई संवेदनशीलता दिखाई।
राज्य सरकार जहां “मिशन शक्ति”, “नारी सुरक्षा”, और “आपात चिकित्सा सेवा” की बात करती है, वहीं ज़मीनी हकीकत यह है कि पीड़ितों को सिर्फ इसलिए इलाज नहीं मिला क्योंकि उनके पास पुलिस की रिपोर्ट नहीं थी।
पुलिस पर गंभीर आरोप, तहरीर बदलवाने का दबाव
घटना के बाद जब परिजन कर्नलगंज कोतवाली पहुंचे और दबंगों के खिलाफ तहरीर दी, तो पुलिस ने उनकी तहरीर स्वीकारने से इनकार कर दिया। आरोप है कि पुलिस न केवल मुकदमा दर्ज करने में टालमटोल कर रही है, बल्कि उल्टा पीड़ितों पर तहरीर बदलने का दबाव बना रही है। कथित रूप से पुलिसकर्मी कह रहे हैं कि,
“जैसा हम कहें वैसा लिखवाओ, तभी मुकदमा दर्ज होगा।”
यह रवैया न सिर्फ अन्यायपूर्ण है, बल्कि पीड़ितों के मौलिक अधिकारों का खुला उल्लंघन भी है।
उठते हैं कई गंभीर सवाल:
- क्या अब FIR दर्ज कराना आम नागरिक के लिए असंभव हो गया है?
- क्या इलाज पाने के लिए अब कानून का दस्तावेज होना जरूरी है?
- क्या पुलिस अब पीड़ित की नहीं, राजनीतिक परिस्थिति की तहरीर पर ही कार्रवाई करती है?
जनता में गुस्सा, सोशल मीडिया पर उबाल
यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है, और आम जनता तथा सामाजिक संगठनों ने गहरी नाराजगी जताई है। लोगों ने सवाल उठाए हैं कि अगर एक घायल महिला और उसका बेटा अस्पताल और थाने के चक्कर काट रहे हैं, और फिर भी उन्हें इलाज व न्याय नहीं मिल रहा है, तो यह कैसा लोकतंत्र है?
हिंद लेखनी न्यूज़ से बात करते हुए एक स्थानीय नागरिक ने कहा —
“यह शासन का नहीं, शोषण का प्रतीक बनता जा रहा है। जो पीड़ित हैं, वही हर जगह उपेक्षित हैं — अस्पताल में भी और थाने में भी।”
उच्चस्तरीय जांच की मांग
जनता ने @dgpup और @gondapolice से मांग की है कि—
- पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच करवाई जाए,
- दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए,
- लापरवाह चिकित्सकों और पुलिसकर्मियों को तत्काल निलंबित किया जाए,
और पीड़ितों को तत्काल इलाज व सुरक्षा प्रदान की जाए।
