श्रद्धांजलि का एक भी नहीं निकला शब्द,राजा आनंद सिंह और बृजभूषण सिंह की अदावत का किस्सा

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गोण्डा। गोण्डा सोशल नेटवर्किंग साइट पर इस समय जहां एक पूर्व मंत्री के निधन पर सहानुभूति एवं श्रद्धांजलि अर्पित करने को लेकर होड़ सी लगी है,लोग उनके आवास पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित कर उनके राजनीतिक जीवन के उल्लेखनीय योगदान को बता रहे हैं,तो वहीं दूसरी तरफ एक पोस्ट सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही है जिसका शीर्षक “गोण्डा की मिट्टी शर्मिन्दा है, क्योंकि उसने उन्हें जन्म दिया,जो अब ‘नेता’ तो हैं पर “मनुष्य” होना भूल गये हैं।

संदर्भ में ये देते हुए कि आनंद सिंह के निधन पर बृजभूषण शरण सिंह की चुप्पी के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि उनकी तरफ से श्रद्धांजलि का एक शब्द भी आखिर क्यों नहीं निकला? यहां तक कि दोनों बेटे प्रतीक भूषण और करण भूषण भी कहीं नजर नहीं आए। जिले की मनकापुर रियासत प्रदेश व देश मे अपने परिचय की मोहताज नही। देश के आजादी से लेकर वर्तमान शियासत मे मनकापुर रियासत को अनदेखा कर वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य मे बात करना नाकाफी होगा। मनकापुर रियासत के वयोवृद्ध वरिष्ठ राजनीतिज्ञ पूर्व मंत्री पूर्व सांसद कुंवर आनंद सिंह उर्फ अन्नू भइया राजा साहब का रविवार देर रात सांस लेने की दिक्कत के चलते 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उनके निधन पर जिले से लेकर प्रदेश व देश से तमाम लोग व्यक्तिगत उपस्थित होकर व सोशल साइट्स पर श्रद्धांजली अर्पित कर

उनके द्वारा अपने राजनीतिक जीवन काल मे किये गये कार्यो पर सहानुभूति जता रहे हैं। तमाम लोग उनके आवास पहुंचकर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर अपनी संवेदना प्रकट कर रहे है। दिवंगत पूर्व मंत्री कुंवर आनंद सिंह उर्फ अन्नू भइया राजा साहब चार बार जिले से विधायक एवं चार बार सांसद रहे थे। इतना ही नहीं गोण्डा-बलरामपुर जिला जब एक था, तो ग्यारह विधानसभा की सीटें थीं। कांग्रेस मे रहते हुए हाईकमान ग्यारह पर्चे बिना नाम का देता था, जिसका नाम कुंवर आनंद सिंह उर्फ अन्नू भैया भर देते थे वही विधायक हो जाता था। देश की प्रधानमंत्री रहते हुए इन्दिरा गांधी ने उनके बडी लड़की की शादी मे मनकापुर रियासत पहुंचकर बेटी को आशीर्वाद दिया था। देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह उनके सगे समधी थे, जब उन्होंने कांग्रेस से बगावत कर अलग पार्टी बनायी। उस समय भी आनन्द सिंह ने कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा कायम रखी थी। इन्दिरा गांधी इन्हे यूपी टाइगर के नाम से सम्बोधित करती थीं। बृजभूषण शरण सिंह छात्र राजनीति से ही इलाके के सियासत शुरू कर दिए थे। 1987 में गन्ना समिति के चेयरमैन का चुनाव लड़ा और पहली बार में ही जीत गए। इसके बाद अपने राजनीतिक गुरु की सलाह पर उन्होंने लोकसभा चुनाव में जनता दल की मदद की 1988 के दौर में वो पहली बार बीजेपी के संपर्क में आए और हिंदूवादी नेता की छवि के तौर पर ख़ुद को स्थापित करने लगे। बीजेपी के क़रीब आने के बाद बृजभूषण सिंह ने पहली बार विधान परिषद यानी एमएलसी का चुनाव लड़ा, लेकिन 14 वोट से हार गए। इस हार के ठीकरा आनंद सिंह उर्फ अन्नू भइया पर फोड़ते हुए उनके कट्टर विरोधी हो गये। 1989 के लोकसभा चुनाव मे जनता दल प्रत्याशी अब्दुल फजुलबारी उर्फ बन्ने की मदद की लेकिन यह चुनाव वह हार गये। कांग्रेस के प्रत्याशी कुंवर आनंद सिंह विजयी हुए। हालांकि, इस हार के बाद वे कमज़ोर नहीं पड़े, बल्कि 1971, 1980, 1984, 1989 में लगातार कांग्रेस से चुनाव जीतते रहे। आनंद सिंह को राममंदिर आंदोलन के बाद से चली लहर में बीजेपी के टिकट पर 1991 में भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह ने हराते हुए यहां कमल खिलाया। लेकिन इसी बीच दाऊद से सम्बन्ध होने के आरोप में उन्हे टाडा कानून के तहत जेल जाना पड़ा, ऐसी स्थिति में 1996 में उनकी जगह उनकी पत्नी केतकी सिंह बीजेपी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ीं और एक बार फिर कुंवर आनन्द सिंह को हार का सामना करना पड़ा। केतकी सिंह को विजय मिली। लेकिन जेल जाने के प्रकरण मे भी बृजभूषण शरण सिंह ने कुंवर आनंद सिंह को साजिश का हिस्सा बताया। 1998 में मनकापुर राजघराने के कुंवर आनंद सिंह के बेटे कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ राजा भैया ने सपा से टिकट हासिल किया और जीत दर्ज की। 1999 में बीजेपी से बृजभूषण सिंह ने सपा के कीर्तिवर्धन सिंह को हरा दिया। 2004 में कीर्तिवर्धन सिंह ने सपा से जीत हासिल की लेकिन इस बीच बृजभूषण शरण सिंह को भाजपा ने बलरामपुर भेज दिया।

साल 2009 में बेनी प्रसाद वर्मा (कांग्रेस) ने बसपा प्रत्याशी रहे कीर्तिवर्धन सिंह को चुनाव मे शिकस्त देकर जीत दर्ज की। साल 2014 और 2019 में 2024 कीर्तिवर्धन सिंह लगातार बीजेपी से जीतते आ रहे हैं। बृजभूषण शरण सिंह भी बीजेपी मे हैं लेकिन एक चुनावी हार से उत्पन्न हुई तल्खी आज तक बरकरार है। एक ही पार्टी मे साथ-साथ रहते हुए भी जिले की राजनीतिक सियासत मे कभी ये दोनों एक राय नही हुए। वर्तमान समय मे मनकापुर रियासत के एकलौते वारिस भाजपा सांसद केंद्रीय विदेश व पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ राजा भइया लगातार भाजपा से तीसरी बार सांसद हैं वैसे दो बार सपा से भी सांसद रह चुके हैं और कुल मिलाकर पांच बार सांसद बनने का अवसर उन्हे प्राप्त हो चुका है। अब राजा भईया के पिता आनन्द सिंह की मृत्यु के बाद जहां खास हों या आम सभी पुरानी बातों को भूल मनकापुर रियासत पहुंचकर अपने अपने स्तर पर संवेदना व्यक्त करने मे कोई कोर कसर नही छोड रहे हैं,वहीं जिले के एक कद्दावर नेता द्वारा एक भी शब्द हार्दिक संवेदना अथवा श्रद्धांजलि का भी नहीं निकलना राजा आनंद सिंह और बृजभूषण सिंह की अदावत का किस्सा फिर से ताजा कर रहा है,जिसको लेकर शीर्षक “गोण्डा की मिट्टी शर्मिंदा है, क्योंकि उसने उसे जन्म दिया,जो अब ‘नेता’ तो है,पर “मनुष्य” होना भूल गया। उड़न खटोला से उड़ान भरने और एक अच्छा इन्सान बनने मे बहुत फर्क होता है, सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है। इस तरह एक बार यह बहस पुरानी अदावत को ताजा करने का कार्य कर रही है।

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