


गोंडा, 08 जुलाई 2025। उत्तर प्रदेश सरकार की पारंपरिक नदियों के संरक्षण और पुनर्जीवन की राज्यव्यापी पहल के तहत आज जनपद गोंडा में पौराणिक मनोरमा नदी के पुनरुद्धार कार्य का ऐतिहासिक शुभारंभ हुआ। जिलाधिकारी श्रीमती नेहा शर्मा के नेतृत्व में ब्लॉक इटियाथोक के ग्राम सिसई बहलोलपुर में श्रमदान कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ग्रामीणों, युवाओं और जनप्रतिनिधियों ने भागीदारी कर इसे जनआंदोलन का रूप दिया।
करीब 200 से अधिक लोगों ने श्रमदान कर यह संदेश दिया कि यह अभियान केवल प्रशासनिक प्रयास नहीं, बल्कि जनसामान्य की आस्था, संस्कृति और प्रकृति के संरक्षण का साझा उत्तरदायित्व है। जिलाधिकारी ने कहा, “मनोरमा नदी केवल जलधारा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक है। इसका पुनर्जीवन गोंडा के स्वाभिमान से जुड़ा विषय है।”
इस अवसर पर मुख्य विकास अधिकारी श्रीमती अंकित जैन सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। जिलाधिकारी ने बताया कि नदी के पुनर्जीवन हेतु बहुआयामी कार्ययोजना तैयार की गई है, जिसके अंतर्गत गोण्डा-बलरामपुर रोड से ताड़ी लाल गांव तक नदी की गाद व अतिक्रमण हटाकर जलधारा को पुनः जीवंत किया जाएगा। इसके लिए जेसीबी व पोकलैंड मशीनों की सहायता से सफाई कार्य प्रारंभ किया गया है।
पर्यावरणीय पुनर्स्थापन के लिए नदी किनारे पीपल, नीम, पाकड़ जैसे देशी वृक्षों का रोपण किया जाएगा। यह कार्य वन विभाग की निगरानी में होगा, जबकि सिंचाई विभाग को नदी की संरचना और प्रवाह पथ का तकनीकी आकलन करने की जिम्मेदारी दी गई है। इस अभियान में विभागीय समन्वय और ग्राम पंचायतों की सहभागिता सुनिश्चित की जा रही है।
मनोरमा नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी उल्लेखनीय है। करीब 115 किलोमीटर लंबी यह नदी गोंडा जनपद के तिर्रे ताल से निकलकर बस्ती जिले के महुली में कुआनों नदी से मिलती है। पौराणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख महर्षि उद्दालक की पुत्री “मनोरमा” के नाम से मिलता है और यह मखौड़ा धाम के पास बहती है, जो धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है।
बीते वर्षों में यह नदी अतिक्रमण, गाद और उपेक्षा के कारण संकट में आ गई थी, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों पर अब यह पुनर्जीवन अभियान न केवल पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि गोंडा की सांस्कृतिक चेतना को भी पुनर्स्थापित करने की पहल है।
जिलाधिकारी ने सभी सामाजिक संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं और ग्रामवासियों से आह्वान किया है कि वे इस मुहिम को अपनाकर गोंडा को फिर से जल, जंगल और संस्कृति की पहचान दिलाने में सक्रिय भागीदारी निभाएं।
