मोतीपुर, बहराइच से स्थानांतरण के बावजूद प्रभारी निरीक्षक श्रीधर पाठक कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थे, जिसके चलते डीजीपी के निर्देश पर उन्हें पद से हटाया गया।
गोंडा। कर्नलगंज कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक श्रीधर पाठक को बीते वर्ष सितंबर 2023 में गोरखपुर स्थानांतरित किया गया था, बावजूद इसके वे कर्नलगंज कोतवाली में मनचाही तैनाती पाने में सफल रहे। इस पर अब कई सवाल उठने लगे हैं और यह मामला चर्चा का विषय बन गया है।
सूत्रों के अनुसार, 30 सितंबर 2023 को आईजी जोन गोरखपुर द्वारा श्रीधर पाठक का स्थानांतरण मोतीपुर, बहराइच से गोरखपुर किया गया था। साथ ही संबंधित पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया गया था कि वे तत्काल उन्हें कार्यमुक्त कर गोरखपुर में कार्यभार ग्रहण करने के लिए भेजें। लेकिन, मजबूत पकड़ और गहरी पैठ के चलते श्रीधर पाठक ने गोरखपुर में चार्ज नहीं लिया और मोतीपुर में ही डटे रहे।
डीजीपी के आदेश पर हटाए गए श्रीधर पाठक
लगातार आदेशों की अनदेखी करने वाले श्रीधर पाठक को आखिरकार डीजीपी के निर्देश पर बहराइच के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक प्रशांत वर्मा ने मोतीपुर थाने से हटा दिया। उनकी जगह जरवल रोड में तैनात निरीक्षक दद्दन सिंह को नया प्रभारी नियुक्त किया गया।
गोंडा में फिर हासिल की मनचाही पोस्टिंग
सूत्र बताते हैं कि मोतीपुर से हटने के बावजूद श्रीधर पाठक ने अपनी रसूख का इस्तेमाल कर गोंडा में अपनी पैठ बना ली। पहले 4 मार्च 2024 को उन्हें पुलिस अधीक्षक कार्यालय, गोंडा में मॉनिटरिंग सेल/साक्षी सुरक्षा प्रकोष्ठ में तैनाती मिली। इसके बाद 20 जुलाई 2024 को वह कर्नलगंज कोतवाली में प्रभारी निरीक्षक के पद पर अपनी मनचाही तैनाती पाने में सफल रहे।
यह तब हुआ, जब उनके साथ स्थानांतरित कर्नलगंज कोतवाली के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक चितवन कुमार ने गोरखपुर में चार्ज लेकर वहां कार्यभार संभाल लिया, लेकिन श्रीधर पाठक गोरखपुर जाने के बजाय गोंडा में ही टिके रहे।
प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल
इस पूरी घटना ने पुलिस महकमे में सवाल खड़े कर दिए हैं। जब चितवन कुमार को स्थानांतरण के तुरंत बाद गोरखपुर में पदभार ग्रहण करना पड़ा, तो श्रीधर पाठक को यह छूट कैसे मिली कि वह गोंडा में ही रह सकें? क्या यह उच्चाधिकारियों के आदेशों की अनदेखी है या पुलिस विभाग में प्रभाव और जुगाड़ का नतीजा?
डीजीपी के स्पष्ट आदेश के बावजूद गोरखपुर में चार्ज न लेना और गोंडा में अपनी पसंदीदा तैनाती करवा लेना, यह दर्शाता है कि श्रीधर पाठक का गोंडा और बहराइच की कुर्सियों से मोह अभी भी बना हुआ है। आखिर इसकी वजह क्या है? प्रशासन की इस कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजमी है।
