नई दिल्ली: 52 साल की उम्र में प्रियंका गांधी अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रही हैं. सीट चुनी है दक्षिण भारत के केरल राज्य की वायनाड. वही वायनाड, जहां से राहुल गांधी दो बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं. राहुल के रायबरेली सीट रखने और वायनाड छोड़ने के बाद प्रियंका की एंट्री चुनावी राजनीति में हो रही है. वैसे तो राजनीति में कदम रखने वाला हर कार्यकर्ता चुनावी राजनीति के जरिए संसद पहुंचने का सपना देखता है लेकिन प्रियंका गांधी को यह मौका काफी देर से मिला है. हालांकि, प्रियंका गांधी वायनाड से यूं ही नहीं उतर रही हैं. इसके पीछे गांधी परिवार की बड़ी रणनीति है.
दरअसल, प्रियंका गांधी राजनीति में सोनिया गांधी के प्रचार के जरिए जुड़ीं. उसके बाद राहुल गांधी के चुनावी कार्यक्रम की पूरी कमान उनके पास आ गई. इसके बाद वो अमेठी और रायबरेली की करता धर्ता बन गईं. मां और भाई दोनों के चुनाव की बागडोर उनके ही हाथ में रही. सोनिया की उम्र ढलने और राहुल गांधी के राष्ट्रीय फलक पर उभरने के दौरान प्रियंका गांधी पूरी तरह अमेठी और रायबरेली पर ध्यान केंद्रित कर चुनाव लड़वाती रहीं.
प्रियंका ने खुद को साबित किया
हाल तक उन्होंने राहुल गांधी के रायबरेली जाने के फैसले के बाद अमेठी की कमान संभाली और किशोरी लाल शर्मा के चुनाव की कमान अपने हाथ में ले ली. अमेठी से जीत और रायबरेली से राहुल गांधी के रिकॉर्ड मतों से जीतने के बाद सोनिया गांधी पर प्रियंका को इनाम देने का दबाव बढ़ गया. वायनाड सीट खाली करने के राहुल गांधी के एलान के साथ ही मौका भी आ गया और दस्तूर भी कि प्रियंका को चुनाव लड़वाया जाए. गांधी परिवार को ये फैसला लेने में ज्यादा वक्त भी नहीं लगा.
प्रियंका वायनाड से ही क्यों?
अब सवाल यह है कि प्रियंका गांधी को वायनाड से क्यों लड़वाया जा रहा है? तो इसके पीछे राहुल गांधी की उत्तर और दक्षिण की राजनीति को साधने की रणनीति है. राहुल गांधी ये मानते हैं कि जब अमेठी ने दगा दिया, तब उनको सुदूर दक्षिण के वायनाड ने ही बचाया. वायनाड के लिए राहुल गांधी के मन में इज्जत इतनी बढ़ गई कि वायनाड छोड़ने का फैसला लेना उनके लिए काफी मुश्किल हो गया. उधर, केरल और वायनाड के लोगों ने एक सुर में मांग कि राहुल अगर वायनाड छोड़ रहे हैं तो गांधी परिवार के ही किसी सदस्य को यहां से चुनाव लड़ना चाहिए. स्वाभाविक है की वो नाम प्रियंका का ही होता. वही हुआ. केरल और वायनाड ने 2019 और 2024 दोनों लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का जमकर साथ दिया. केरल के लोगों ने लोकसभा में सीटों से कांग्रेस की झोली भर दी. राहुल गांधी उस आधार को खोना नहीं चाहते. इसलिए भी प्रियंका गांधी को टिकट देना सियासी मजबूरी बन गई.
गांधी परिवार की बड़ी रणनीति
अब कांग्रेस को उत्तर में पुनर्जीवित करने का जिम्मा पार्टी राहुल गांधी के कंधे पर है. दक्षिण भारत में राहुल गांधी इस मिशन में काफी सफल रहे हैं. अब उत्तर भारत के साथ पूरे देश में राहुल गांधी पार्टी का मजबूत आधार तैयार करने का काम करेंगे. दक्षिण के लोग प्रियंका गांधी के सहारे खुद को गांधी परिवार से पहले की तरह ही जुड़ा हुआ महसूस करेंगे. वैसे भी कांग्रेस ने मजबूती के लिए हमेशा दक्षिण का रुख किया है. इंदिरा गांधी के चिकमगलूर या फिर मेंढक से चुनाव लड़ने की बात रही हो या फिर सोनिया गांधी के बेल्लारी से… इस परंपरा को राहुल गांधी ने भी वायनाड से चुनाव लड़कर निभाया. और अब प्रियंका गांधी भी वही कर रही हैं.
राहुल के दिमाग में क्या
केरल में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां प्रियंका गांधी जमीन तैयार करेंगी और राहुल गांधी सही समय पर आक्रामक चुनाव प्रचार के जरिए इस राज्य में पार्टी की सरकार की वापसी करवाएंगे. प्रियंका के लोकसभा सांसद बनने से लोकसभा में राहुल गांधी को मजबूती मिलेगी. राहुल गांधी पर लोकसभा में नेता विपक्ष का पद लेने का दबाव है. संभवतः वो इसे स्वीकार भी कर लें. चूंकि राहुल गांधी को पूरे देश में दौरे और पार्टी के पक्ष में प्रचार करना है, इसलिए संसद में राहुल गांधी की अनुपस्थिति में प्रियंका एक ताकत बनकर विपक्षी सांसदों का नेतृत्व कर सकती हैं. सोनिया गांधी अब राज्यसभा जा चुकी हैं.
2029 की तैयारी
कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव 2029 के लिए कांग्रेस ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. कांग्रेस पार्टी भले ही इंडिया गठबंधन के बैनर तले दिख रही हो लेकिन 99 सीटें जीतने के बाद उसे अपने दम पर अगले चुनाव में 272 दिखने लगा है. यही वजह है की राहुल गांधी ने प्रियंका को चुनावी मैदान में उतारकर पूरे दमखम और दोगुनी ताकत से 2029 की तैयारी शुरू कर दी है. यह तैयारी है 272 की.
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FIRST PUBLISHED : June 18, 2024, 12:49 IST