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भाजपा के दिग्गज नेताओं के लिए चुनौतीपूर्ण शुरुआत”

 भाजपा के दिग्गज नेताओं के लिए चुनौतीपूर्ण शुरुआत”

2024 के लोकसभा चुनावों के शुरुआती रुझान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए एक कठिन चुनौती का संकेत दे रहे हैं। पिछले दो चुनावों में शानदार जीत दर्ज करने वाले कई प्रमुख भाजपा नेता इस बार अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ते नजर आ रहे हैं, जिससे पार्टी के भीतर चिंता की लहर दौड़ गई है।

 

अमेठी सीट, जहां केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने 2019 में कांग्रेस के राहुल गांधी को पराजित किया था, अब कांग्रेस के उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा के पक्ष में झुकी हुई दिखाई दे रही है। यह वही सीट है जिसे भाजपा ने पिछले चुनाव में कांग्रेस के गढ़ से छीन लिया था, और इस बार इसे फिर से हासिल करना मुश्किल साबित हो रहा है।

 

सुल्तानपुर में मेनका गांधी भी समाजवादी पार्टी के रामभुआल निषाद से पिछड़ रही हैं। 2019 में मामूली अंतर से जीतने वाली मेनका गांधी के लिए इस बार की लड़ाई और भी कठिन हो गई है, खासकर तब जब पूर्व सांसद चन्द्रभद्र सिंह सोनू ने सपा प्रत्याशी को समर्थन दे दिया है।

 

मुजफ्फरनगर से दो बार के विजेता संजीव बालयान समाजवादी पार्टी के हरेंद्र सिंह मलिक से पीछे चल रहे हैं। संजीव बालयान की पिछड़ती स्थिति भाजपा के लिए विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि यह सीट उनके लिए एक मजबूत किला मानी जाती थी।

 

आजमगढ़ में भोजपुरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ, जो पिछले चुनाव में जीत दर्ज कर चुके थे, इस बार समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव से पीछे हैं। 2019 में अखिलेश यादव के खिलाफ जीत हासिल करने वाले निरहुआ के लिए यह चुनाव भी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है।

 

गुरुग्राम में भाजपा के राव इंद्रजीत सिंह, जो कभी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे थे, अब कांग्रेस के ही राज बब्बर से पिछड़ रहे हैं। यह स्थिति भाजपा के लिए एक और झटका है, क्योंकि राव इंद्रजीत सिंह ने 2014 और 2019 में इस सीट पर जीत दर्ज की थी।

 

दक्षिण भारत में, कोयंबटूर सीट पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस अधिकारी अन्नामलाई डीएमके के गणपति पी राजकुमार से पीछे चल रहे हैं। यह सीट भाजपा के लिए हमेशा से कठिन रही है, और इस बार भी चुनावी मुकाबला कड़ा है।

 

इन सभी रुझानों से स्पष्ट है कि भाजपा के लिए 2024 का चुनाव पहले के मुकाबले कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। हालांकि, ये केवल शुरुआती रुझान हैं, और चुनावी नतीजे आने तक स्थिति में बदलाव संभव है। फिर भी, भाजपा को इन संकेतों से सतर्क रहकर अपनी रणनीति में आवश्यक बदलाव करने की जरूरत है, ताकि वे इस चुनावी लड़ाई में मजबूती से उभर सकें।

PAWANDEV SINGH
Author: PAWANDEV SINGH

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